"वृक्ष"
शब्दों के वृक्ष से झड़ चुके हों,,,उनके पत्ते जैसे ..
पतझड़ कुछ यू आया ...
शाख़ों से जुदा हुवा शब्द ..गिरे धरा पर
न जाने पतझड़ कुछ यूँ आया ...
सुखी गर्म हवा के थपेड़ों ने शब्दों को कुछ यूँ उखाड़ा
बस यूँ लगा ये पतझड़ क्योँ आया ..?
जब टहनी के कन्धों पर सपनों का झुरमुट न रहा
तो लगा ये पतझड़ फिर क्योँ आया ..?
वृक्ष के तले न तो कोई छाया है न तो कोई झुला
है तो बस पत झड़ के सूखे पत्ते और गर्म हवा...!!!
(its abt the story of separation)
http://shunya-si.blogspot.in/
(its abt the story of separation)
http://shunya-si.blogspot.in/
पतझड़ के झड जाने से
ReplyDeleteपत्तों के धरा पर गिर जाने से
क्यूँ भरा है मन उद्वेग से...
न जानते हो क्या
पतझड़ के पश्चात ही
होता है नए सृजन का जन्म...
शब्द विहीन हो भी काफी गहरी छाप छोड़ गयी हैं....बहुत खूब लिखती हैं...